Text of PM’s address at Dashamah Soundarya Lahari Parayanotsava Mahasamarpane in Bengaluru
वेदांत भारती से जुड़े अन्य सभी वरिष्ठ महानुभव, देवियों और सज्जनों,
पुरानी मान्यता है कि जब एक ही जगह पर, एक ही स्वर में, एकजुट होकर मंत्र का जाप किया जाए तो उस जगह ऊर्जा का ऐसा चक्र निर्मित होता है, जो मनमंदिर, शरीर, आत्मा सभी को अपनी परिधि में ले लेता है। नाद-ब्रह्म की कल्पना हमारे यहां उसी संदर्भ में स्वीकृत की गई है। आधुनिक विज्ञान भी नाद-ब्रह्म के सामर्थ्य का, मंत्रों के उच्चारण की ताकत का इन्कार नहीं करता है। आज, इस समय मैं दक्षिणामूर्ति स्त्रोत और सौन्दर्य लहरी के इस अदभुत पाठ से पूरे वातावरण में वही ऊर्जा महसूस कर रहा हूं। एक दिव्य अनुभूति जिसमें रस भी है, रहस्य भी है और ईश्वर के साथ रम जाने की अदम्य इच्छा भी है।
सौन्दर्य लहरी के हर मंत्र में एक अलग शक्ति है, एक अलग भाव है। वो भाव, वो शक्ति इस समय हम सभी को एक नई चेतना, नई ऊर्जा से भर रही है और मेरा सौभाग्य रहा है, मैंने वर्षों से नवरात्री की साधना से जुड़ा हुआ इंसान रहा हूं और मेरे नवरात्री की साधना के जो क्रम है उसमें एक स्थान सौन्दर्य लहरी का भी है।
मैं परम पूज्य श्री श्री शंकर भारती महास्वामी जी को नमन करते हुए, वेदांत भारती का आभार व्यक्त करता हूं। कि उन्होंने मुझे इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए निमंत्रित किया और उसी भावविश्व में कुछ पल बिताने का मुझे सौभाग्य दिया। ये मेरा सौभाग्य है कि श्री श्री शंकर भारती महास्वामी जी के सानिध्य में सौंदर्य लहरी के पाठ का साक्षात अनुभव आज मुझे भी मिल सका। स्वामी जी के आशीर्वाद से इस तरह सौंदर्य लहरी के पाठ के दस वर्ष पूरे हो रहे हैं।
आप सभी को मेरी तरफ से बहुत-बहुत बधाई है, बहुत शुभकामनाएं है। और मैं मानता हूं कि आप भाग्यवान हैं, इस पवित्र कार्य का आप हिस्सा बन पाए हैं। भाईयो बहनों, आठ दस दिन पहले मैं केदारनाथ जी गया था। मंदिर के कपाट बंद होने वाले थे। मेरा सौभाग्य था कि महादेव जी के दर्शन करने का मुझे अवसर मिला। जब भी मैं केदारनाथ जाता हूं, मेरे मन में एक विचार बार-बार उठता है। कैसे हजार वर्ष पूर्व आदिशंकराचार्य जी इस दुर्गम स्थल पर पहुंचे होंगे।
आधुनिक तकनीक के इस दौर में जहां आज भी जाना आसान नहीं है, वहां हजार साल पहले आदिशंकर कैसे पहुंचे होंगे। ऊर्जा का वो कौन सा चक्र होगा, कौन सा सामर्थ्य होगा, जिसकी शक्ति से सिर्फ 32 वर्ष की आयु में शंकराचार्य जी ने पूरे भारत की तीन बार पैदल परिक्रमा की, देश के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की। भारत की सांस्कृतिक एकता को एक माला में पिरोने का अदभुत सफल प्रयास किया।
आदिशंकराचार्य जी ने अपना जीवन हमारी अध्यात्मिक परंपराओं को मजबूत करने में समर्पित कर दिया था। हमारी संस्कृति में जो गलत परंपराएं धीरे-धीरे शामिल हो गई थीं, उनका आदिशंकराचार्य जी ने बड़ी सटीक तरीके से बारीकी से उसका analysis विश्लेषण किया, और उस आयु में अपने भीतर की बुराईयों की आलोचना करने की उन्हें हिम्मत दिखाई। सटीक तर्क देकर के उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को उस गलत राह पर जाने से रोकने के लिए भरपूर प्रयास किया। शिव-शक्ति-विष्णु-गणपति और कुमार की पूजा को, एक साथ करने की परंपरा को आपने बल दिया। भारतीय परंपरा को उन्होंने फिर से एक बाद पुन: स्थापित किया। आदिशंकराचार्य ने वेद और उपनिषद के ज्ञान से संपूर्ण भारत को एकीकृत किया, एकता के भाव से जोड़ा। शास्त्र को उन्होंने साधन बनाया, शस्त्र नहीं बनने दिया। अलग-अलग विचार-धाराओं और दर्शन की अच्छी बातों को उन्होंने आत्मसात किया और लोगों को ज्ञान और भक्ति के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। भविष्य की पीढ़ी के लिए उन्होंने सौंदर्य लहरी की रचना की। एक ऐसी रचना जिससे देश का आम नागरिक जुड़ सका। देवी की स्तुति करते हुए सौंदर्य लहरी में इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि ईश्वर के भिन्न-भिन्न स्वरूपों में कोई भेद नहीं किया जाए।
“एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति”
सौंदर्य लहरी से मिला आशीर्वाद भक्तों में भी बिना किसी भेदभाव, हर किसी को समान रूप से प्राप्त होता है। कहते हैं सौंदर्य लहरी के पाठ से ज्ञान, धन, स्वास्थ्य, सभी का लाभ मिलता है। आदिशंकराचार्य द्वारा किया गया तप भारतीय संस्कृति के वर्तमान स्वरूप में आज भी विद्यमान है। एक ऐसी संस्कृति जिसके लिए सब कुछ ग्राह्य है, जो सबको आत्मसात करती है, सबको साथ लेकर चलती है। और यही संस्कृति New India का भी आधार है। ऐसी संस्कृति जो सबका साथ सबका विकास के मंत्र पर विश्वास रखती है।
भाइयों और बहनों, आदिशंकराचार्य के संदेश को जन-जन तक पहुंचाने में श्री श्री शंकरभारती महास्वामी जी ने अपना जीवन समर्पित कर दिया है। पूरे विश्व को एक परिवार मानते हुए एकात्म भाव का आदिशंकराचार्य का संदेश वो वेदांत भारती के माध्यम से लोगों तक पहुंचा रहे हैं। वेद, उपनिषद, कितने ही भाष्य, कितनी ही पुस्तकों के प्रकाशन से वो निरंतर जुड़े रहे हैं और उस प्रवृति को बढ़ाते चले है।
साथियों, भारत की आध्यात्मिक महिमा और अति प्राचीन संदेश को जितने ज्यादा लोग पढ़ें, उतना ही विश्व का कल्याण होगा। उलझन में फंसी पड़ी मानव जात, संकटों से घिरी हुई मानव जात, तू बड़ा कि मैं बड़ा, तेरा मार्ग मोक्ष को प्राप्त करेगा कि मेरा मार्ग मोक्ष को प्राप्त करेगा, ऐसे संकट से जब मानव जात गुजर रही है तब आदिशंकराचार्य अद्वैत का सिद्धांत जहां द्वैत नहीं है, वहीं तो अद्वैत होता है और जहां द्वैत नहीं वहां संघर्ष की संभावना भी नहीं होती है। सम्पूर्ण विश्व के देशों में जीवन के मार्ग में जब भी किसी प्रकार की बाधा आती है तब दुनिया की निगाहें भारत की संस्कृति और सभ्यता पर आकर टिक जाती हैं। एक तरह से विश्व की समस्त समस्याओं का उत्तर हमारी परंपराओं में से प्राप्त हो सकता है। हमारी संस्कृति में से हो सकता है। जब हम कहते हैं और सिर्फ कहते हैं ऐसा नहीं हमें उस प्रकार से जीने के संस्कार मिले हैं।
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु ।
सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
सभी का पोषण हो, सभी को शक्ति मिले, हम कभी ये नहीं कहते मेरा पोषण हो मुझे शक्ति मिले। हम ये नहीं कहते कि मंदिर में जाए उसका पोषण हो, उसको शक्ति मिले। सभी का पोषण हो, सभी को शक्ति मिले।“सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु”... ये हमारे संस्कार हैं। कोई किसी से द्वेश ना करे।
आज इस अवसर पर मैं वेदांत भारती के एक आयोजन का विशेष जिक्र करना चाहता हूं और वो है- “विवेकदीपनि” और “विवेकउत्कर्षनि प्रतियोगिता”। बहुत कम लोगों को मालूम होगा आदिशंकराचार्य के संवाद की उस बातो का, हमारे देश में एक लंबा कालखंड ऐसा रहा है जब हमारी संस्कृति, हमारी अध्यात्मिक परंपरा को कमजोर करने के भरसक प्रयास किए गए। उसे नष्ट करने के प्रयास हुए, बहुत प्रहार हुए, लेकिन हजारों वर्षों से चली आ रही हमारी विरासत को कोई खत्म नहीं कर सका। कहते हैं-
दीन-ए-इलाही का बेबाक बेड़ा,
नक्शा जिसका अक्स-ए-आलम में पहुंचा।
किए पांच सौ पार सातों समुंद्र,
न अमन में ठिठका न कोई गुलजाम में झिझका।
वो डूबा दोहाब-ए में गंगा के अंदर।।
ये सामर्थ्य, लेकिन गुलामी के लंबे समय में इतना प्रभाव जरूर हुआ कि हमारी अध्यात्मिक ज्ञान की परंपरा मुख्यत: पुस्तकों तक सीमित होती गई है। कुछ पंडितों के पास सुरक्षित रह गई है। स्वतंत्रता के बाद जिस तरह के प्रयास किए जाने चाहिए थे, वो भी नहीं किए गए। ऐसे में जब आज का नौजवान मोबाइल फोन पर ही सब कुछ पढ़ रहा है, तो फिर पुस्तकों में हमारा जो ज्ञान छिपा है, उसके बारे में उसे कैसे पता चलेगा। हमारी इस महान विरासत को उसे कौन परिचित करवाएगा। और इसलिए स्कूली छात्रों को “विवेकदीपनि” कार्यक्रम के माध्यम से भारतीय संस्कृति और मूल्यों के बारे में बताना और उनमें प्रश्न-उत्तर प्रतियोगिता कराना, मैं समझता हूं स्वामी जी की एक बहुत बड़ी पहल है। और भावियों पीढि़यों के लिए बहुत बड़ी सेवा का काम आपके इस माध्यम से हो रहा है।
देश के भिन्न-भिन्न इलाकों में रह रही आज की पीढ़ी एक दूसरे को जाने, अपनी विरासत को पहचाने ये बहुत आवश्यक है। उसे एक दूसरे के रहन-सहन, खान-पान, एक दूसरे की भाषा-बोली के महत्वपूर्ण शब्दों की जानकारी हो, विविधता में एकता, भारत की विशेषता। यह कहने में बहुत अच्छा लगता है। लेकिन कभी-कभी हम सिंगापुर को जितना जानते हैं उतना कभी बंगाल को नहीं जानते। हम दुबई को जितना जानते हैं। इतना शायद देहरादून को नहीं जानते। ये जो हम अपनों को ही भूलते रहते हैं और इसलिए हमारी ये कोशिश है सरदार पटेल जयन्ती से इसे हमने प्रारंभ किया पिछले वर्ष “एक भारत श्रेष्ठ भारत अभियान” मैं भी चाहता हूं कि हमारे छात्रों के बीच ऐसे ही competition हो, quiz competition हो। देश के अलग-अलग भू-भाग, अलग-अलग परंपराए, अलग-अलग जीवन उसको हिन्दुस्तान के हर कोने में लोगो को पता होना चाहिए।
भारतीय दर्शन में किसी भी व्यक्ति के लिए अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति करना होता है। वेद और उपनिषद से निर्मित ये दर्शन “व्यक्ति” यानि Individual, “समस्ति” यानि Society, “सृष्टि” यानि Creation या Universe और “परमेष्टि” यानि ईश्वर, को एक दूसरे से जुड़ा हुआ मानता है। हम उसे टुकड़ों में नहीं देखते। एक अखण्ड रूप देखते है। एकात्म रूप देखते हैं। यही दर्शन इस धरती को जगत-माता के तौर पर मान्यता देता है। ये दर्शन कहता है कि पृथ्वी हर किसी की है। पृथ्वी ये मां है। इसी दर्शन से निकला “वसुधैवकुटुंबकम” वही तो भावना उजागर करती है ये पूरा विश्व एक परिवार है।
ऐसे ही, सौंदर्य लहरी का भी एक मंत्र है- “फल: अपिवान्छा समाधिकम” यानि धरती से हम जितना मांगते हैं, जितनी हमारी इच्छा होती है, वो हमें उससे भी ज्यादा ही देती है। कितना बड़ा सत्य, कितने साधारण शब्दों में। प्रकृति से हम सभी को पर्याप्त पानी, वायु, नदी, अन्न, खनिज, पेड़-पौधे, सब कुछ पर्याप्त भंडार मिला हुआ है। आवश्कता है तो इस वरदान को सहेज कर रखने की।
यही विचार हमारी परंपरा है। हमारे यहां प्रकृति का दोहन नहीं बल्कि प्रकृति से मिलने वाले उत्पादों का संतुलित उपयोग करने पर बल दिया जाता है। Exploitation of Nature, ये हमारे यहां crime माना गया है। Milking of Nature इतना ही मानव को अधिकार है। ये हमारी परंपरा ने हमें सिखाया है। और यही विचार हमेशा से हमारे शासन में, प्रशासन में आपको नजर आता है।
भाइयों और बहनों, भारत एक ऐसा देश है जो केवल अपने लिए नहीं बल्कि विश्व-पर्यंत न्याय, गरिमा, अवसर और समृद्धि के लिए लगातार प्रयत्नशील रहा है। आपको पता होगा कि भारत के ही प्रयास से पिछले साल International Solar Alliance का गठन किया गया है। सौर ऊर्जा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए सरकार लगातार कोशिश कर रही है। आज केंद्र की योजनाओं में भी आपको प्रकृति की रक्षा के इस भाव की झलक मिलेगी। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, पानी से बिजली बनाने के क्षेत्र में जितना काम अभी हो रहा है, उतना शायद पहले नहीं हुआ है।
दुनिया का सबसे बड़ा Renewable Capacity Expansion Programme आज अगर किसी देश में चल रहा है, तो वो देश है सौन्दर्य लहरी वालों का देश है।
सरकार उस लक्ष्य की तरफ काम कर रही हैं कि 2030 तक देश की 40 प्रतिशत उर्जा की जरूरतों की पूर्ति Non-Fossil Fuel Based Renewable Energy से ही प्राप्त हो। सरकार का लक्ष्य 2022, जब भारत स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा होगा, तब तक 175 गीगावॉट, मैं मेगावॉट नहीं कह रहा हूं। मेगावॉट वो बीते हुए दिन की बात है। अब हिन्दुस्तान गीगावॉट पर सोचता है। गीगावॉट Renewable Energy के उत्पादन का है। सरकार के प्रयासों का असर है कि पिछले तीन वर्षों में 22 हजार मेगावॉट से ज्यादा Renewable Energy की नई क्षमता को Power Grid से जोड़ा गया है। जबकि पिछली सरकार के आखिरी तीन वर्षों में सिर्फ 12 हजार मेगावॉट की Renewable Energy की नई क्षमता जोड़ी गई थी। इसी तरह पिछली सरकार ने अपने आखिरी के तीन सालों में Renewable Energy पर 4 हजार करोड़ रुपए खर्च किए थे। हमने आने के बाद तीन साल के भीतर-भीतर इस सेक्टर में करीब-करीब 11 हजार करोड़ रूपयों की लागत से भी अधिक राशि हमने खर्च की है।
वर्तमान समय में हमारे देश में करीब 300 गीगावॉट बिजली उत्पादन की क्षमता है। इसमें कोयले से, पानी से, सौर और पवन ऊर्जा से सभी तरह की बिजली शामिल है। आपको जानकर हैरानी होगी कि अगर देश में मौजूद संसाधनों का पूरा इस्तेमाल हो तो 750 गीगावॉट बिजली सिर्फ solar power से बनाई जा सकती है। सूर्य ऊर्जा से बनाई जा सकती है। ये हमारे देश की क्षमता है और हमें इसका भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए।
सरकार की तरफ से इस दिशा में लगातार प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए देश-भर में सोलर पार्क लगाए जा रहे हैं, Roof-top Solar programme को बढ़ावा देने के लिए बिल्डिंग by-laws में बदलाव किया गया है, सरकारी इमारतों की सोलर प्लांट के लिए कम ब्याज दरों पर कर्ज दिया जा रहा है, सोलर प्लांट्स को infrastructure Status दिया गया है और उन्हें लंबी अवधि का कर्ज भी दिया जा रहा है। और बैंगलोर की धरती तो एक प्रकार की स्टार्ट-अप की धरती है। यहां के नौजवान innovation करते हैं। नई खोज करते हैं। मैं बैंगलोरू के स्टार्ट-अप की दुनिया से जुड़े नौजवानों को आज निमंत्रण देना चाहता हूं। आइए हम मिलकर के clean cooking का movement चलाएं। गरीब के घर में भी solar energy के माध्यम से सूर्य ऊर्जा के माध्यम से खाना पकाने के सस्ते से सस्ते चूल्हे हम कैसे बनाए। पुराने जो solar cooker वो आज के परिवारों को इतना समय नहीं है। वो तो वैसा ही चूल्हा चाहता है। जैसे गैस का चूल्हा जलता है। और वो आज संभव है। बैंगलोरू के नौजवान, स्टार्ट-अप की दुनिया के नौजवान हिन्दुस्तान एक बहुत बड़ा market है जो भी इस क्षेत्र में आएगा clean cooking के लिए गरीब माताओं के भी आर्शीवाद मिलेंगे। जंगल में रहने वाले लोगों को भी कभी जंगल काटना नहीं पड़ेगा, लकड़ी काटनी नहीं पड़ेगी। solar ऊर्जा से उसका घर का चूल्हा जलेगा। वो अपना खाना पकाकर बच्चों को कम समय में खाना दे सकेंगें। innovation हमें वो करने है जो देश की नई पीढ़ी को काम आएगें। जिस दिन देश के ज्यादतर संस्थान अपनी ऊर्जा, जरूरतें खुद पूरी करने लगेगें तो आप देखिएगा कि कैसे इसका असर समाज के हर स्तर पर पड़ने लगता है।
साथियों, नई approach के साथ किस तरह पर्यावरण की रक्षा के साथ ही लोगों और देश के पैसे की भी बचत हो रही है, इसका उदाहरण मैं आपको देना चाहता हूं। भाइयों और बहनों, LED का बल्ब जो पहले 350 रुपये से ज्यादा का होता था वो अब उजाला स्कीम के तहत केवल 40-45 रुपये में उपलब्ध है। अब तक देश में 27 करोड़ से ज्यादा LED के बल्ब हमारी सरकार बनने के बाद बांटे जा चुके हैं। यहां कर्नाटक में भी करीब-करीब पौने दो करोड़ LED बल्ब वितरित किए गए हैं। अगर एक बल्ब की कीमत में औसतन 250 रुपए की भी कमी मानें तो देश के मध्यम वर्ग को इससे लगभग 7 हजार करोड़ रुपयों की बचत हुई है। इतना ही नहीं, ये बल्ब हर घर में बिजली बिल भी कम कर रहे हैं। जिसके भी घर में LED बल्ब होगा। उसका बिजली का बिल कम होना गारंटी है। और उसके कारण LED बल्ब के उपयोग के कारण ऊर्जा की requirement कम हुई, बिल कम आया। और मध्यम वर्ग के परिवारों में सिर्फ एक साल में हिन्दुस्तान के मध्यम वर्ग के परिवारों की जेब में एक साल में करीब 14 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की अनुमानित बचत हुई है। स्वाभाविक है कि LED के ज्यादा इस्तेमाल से बिजली की खपत भी कम हुई है। बिजली में खपत कम होने का मतलब है की installed capacity में करीब-करीब 7000 मेगावाट कम की जरूरत होगी। 7000 मेगावाट बिजली बचना, अगर 7000 मेगावाट का प्लांट लगा लेते हैं तो कम से कम 35 से 40 हजार करोड़ रुपये की लागत लगती है। सिर्फ बिजली बचा करके हमने 35-40 हजार करोड़ रुपया देश का बचाया है। यानि सिर्फ approach बदल कर काम करने से सिर्फ एक योजना के माध्यम से मध्यम वर्ग के परिवारों के जेब में जो पैसा बचा वो, बल्ब खरीदने में जो बचत हुई वो, बिजली में बचत हुई वो करीब-करीब 55 से 60 हजार करोड़ रूपया का इस देश को इस देश के मध्यम वर्ग के परिवारों को लाभ हुआ है।
सरकार की कोशिश की वजह से अब जहां-जहां local bodies अपनी स्ट्रीट लाइटों को LED बल्ब से बदल रही हैं, वहां पर भी उन्हें आर्थिक फायदा हो रहा है। मैंने मेरे यहां बनारस का मैं MP हूं मैंने बनारस में करवाया करीब 15 करोड़ रूपया उनका बच रहा है। जो और कामों में लग रहा है। और अनुमान है कि एक Tier-II cities में नगर निगम को औसतन 10 से 15 करोड़ रुपए की बचत इससे हो रही है।
ये पैसे अब शहर के विकास में खर्च किए जा रहे हैं। सरकार की इन कोशिशों से भारत विदेश से पेट्रोल-डीजल के आयात पर जितनी धन राशि खर्च करता है, वो भी बचने की संभावना उसमें पड़ी हुई है।
भाइयों और बहनों, भविष्य पेट्रोल और डीजल का नहीं है, एक न एक दिन ये प्राकृतिक संपदा खत्म होने वाली है। भविष्य सौर ऊर्जा का है, पवन ऊर्जा का है, पन बिजली का है। हमारे देश में ये काम इसलिए भी आसानी से हो सकता है क्योंकि हम प्रकृति को सहेजकर रखने वाले, प्रकृति की पूजा करने वाले लोग है। हमारे यहां पेड़ के लिए अपनी जान तक देने की परंपरा रही है, टहनी तोड़ने से भी पहले प्रार्थना की जाती है। प्राणी वनस्पति के प्रति संवेदना हमें बचपन से सिखाई जाती है। हम रोज़ आरती के बाद के शांति मंत्र में “वनस्पतय: शांति आप: शांति” कहते है।
लेकिन ये भी सत्य है कि समय के साथ इस परंपरा भी किसी न किसी खरोंच से फंस चुकी है। आज संत समाज को इस ओर भी अपना प्रयास बढ़ाना होगा। जो हमारे ग्रंथों में है, हमारी परंपराओं का हिस्सा रहा है, उसे आचरण में लाने से ही climate change की चुनौती का सामना किया जा सकता है। हमारा पूरा ऋगवेद इसी को समर्पित है।
भाइयों और बहनों, आपको मैं उज्जवला योजना का भी आज उदाहरण देना चाहता हूं। इस योजना के जरिए सरकार अब तक तीन करोड़ से ज्यादा गरीब महिलाओं को मुफ्त में गैस कनेक्शन दे चुकी है। जब इन महिलाओं के पास गैस कनेक्शन नहीं था, तो वो लकड़ियों पर या फिर केरोसीन पर निर्भर थीं। सरकार की योजना ने ना सिर्फ उनकी जिंदगी आसान बनाई है, बल्कि ये योजना पर्यावरण के लिए भी बहुत उपयोगी साबित हो रही है।
हजारों साल का इतिहास समेटे हुए हमारे देश में समय के साथ परिवर्तन आते रहे हैं। व्यक्ति में परिवर्तन, समाज में परिवर्तन। लेकिन समय के साथ ही कई बार कुछ बुराइयां भी समाज में व्याप्त हो जाती हैं। ये हमारे समाज की विशेषता है कि जब भी ऐसी बुराइयां आई हैं, तो उसको सुधारने के लिए वो काम समाज के बीच में से ही किसी न किसी ने शुरू किया है। हमारे हर संत महापुरूष को याद कीजिए उन्होंने हमारी समाज की बुराइयों के खिलाफ जीवन-पर्यन्त शिक्षित किया है। एक काल ऐसा भी आया जब इसका नेतृत्व केवल हमारे देश के साधु-संत समाज के हाथ में था।
ये भारतीय समाज की अद्भुत क्षमता है कि समय-समय पर हमें आदिशंकराचार्य, महान संतबसवेश्वर जैसे देवतुल्य महापुरुष मिले, जिन्होंने इन बुराइयों को पहचाना, उनसे मुक्ति का रास्ता दिखाया।
आज समय की मांग है पूजा के देव के साथ ही राष्ट्र-देवता की भी बात हो, पूजा में अपने ईष्ट-देव के साथ ही भारत-माता की भी बात हो। अशिक्षा, अज्ञानता, कुपोषण, कालाधन, भष्टाचार जैसी जिन बुराइयों ने भारत-माता को जकड़ रखा है, उससे देश को मुक्त कराने के लिए संत और अध्यात्मिक समाज भी अपने प्रयास बढ़ाए, देश को रास्ता दिखाए।
हम सभी की भागीदारी से ही, हम सभी के प्रयासों से ही New India का निर्माण होगा। सबके साथ, सबके प्रयास से ही सबका विकास होगा।
मैं एक बार फिर आप सभी को सौंदर्य लहरी के पठन के इस अद्भुत आयोजन और उसके दस वर्ष पूरे होने पर, और ये दस वर्ष एक अखंड साधना होती है। मैं आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूं। और उन सभी साधको को जो आज यहां मौजूद होंगे, जो मौजूद नहीं होंगे। जिन्होंने दस साल तक ये साधना की है। मैं उनके चरणों में वंदन करते हुए उस महान तपस्या के लिए उनका धन्यवाद करता हूं।
श्री श्री शंकर भारती महास्वामी जी को नमन के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं।
मैं फिर से एक बार इस पवित्र अवसर पर, पवित्र माहौल में शंकराचार्य काल से चले आ रहे पवित्र मंत्र के गुंजन में शरीक होने का सौभाग्य मिला मेरे लिए धन्य पल है, मैं जीवन में धन्यता के साथ आप सबके आर्शीवाद लेकर के मां भारती के लिए कुछ अच्छे काम करता रहूं यही आपका आर्शीवाद बना रहे।
बहुत-बहुत धन्यवाद !!!